जम्मू कश्मीर का इतिहास क्या है?

जम्मू कश्मीर का इतिहास (History of Jammu Kashmir) के विषय में जानकारी

भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का सबसे बड़ा कारण कश्मीर है, भारत इस पर अपना अधिकार मनाता है और पाकिस्तान इस पर अपना अधिकार मानता है, इसके लिए अभी तक पाकिस्तान ने भारत पर चार पर हमला किया है, इन चारों युद्धों में पाकिस्तान को बहुत ही बुरी तरह से शिकस्त भारत ने दी है, लेकिन इसके बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सका है | पाकिस्तान द्वारा अभी भी छद्यम युद्ध किया जा रहा है, जिसका भारतीय सेना द्वारा मुँह तोड़ जवाब दिया जा रहा है | लेकिन अभी तक कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाया है | इस पेज पर जम्मू कश्मीर का इतिहास के विषय में जानकारी दी जा रही है |

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जम्मू कश्मीर प्राचीन इतिहास (Ancient History)

जम्मू कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी कल्हण द्वारा लिखी गयी राजतरंगिणी से प्राप्त होता है | यह पुस्तक 12वीं शताब्दी ई. में लिखी गयी थी | इसके अनुसार कश्मीर उस समय एक हिन्दू राज्य था | यह भारत के महान शासक “अशोक महान” के साम्राज्य का हिस्सा था | अशोक ने यहाँ पर अपना शासन तीसरी शताब्दी में किया था | अशोक के समय ही इस राज्य में बौद्ध धर्म का प्रचार- प्रसार किया गया था | अशोक के बाद कश्मीर पर कुषाणों का अधिकार हो गया | छठी शताब्दी में उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य ने इस पर अधिकार कर लिया था | विक्रमादित्य के बाद यह शासन ललितादित्या के अधीन हो गया इन्होंने इस पर 697 ई. से 738 ई. तक राज्य किया | ललितादित्या का उत्तराधिकारी अवन्तिवर्मन को घोषित किया गया |

अवन्तिवर्मन ने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर का निर्माण कराया इसके बाद अवन्तिवर्मन ने इसे अपनी राजधानी बना लिया था | उस समय यह एक प्रसिद्ध नगर था जिसके अवशेष आज भी प्राप्त होते है | यहाँ पर महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर के अवशेष मिलते है | गिलगिट में पाण्डुलिपियां प्राप्त हुई है, जोकि पाली भाषा में लिखी गयी है इसमें बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी दी गयी है | त्रिखा शास्त्र की रचना कश्मीर में ही की गयी है |

चौदहवीं शताब्दी में यहाँ पर मुस्लिम सभ्यता का आगमन हुआ | इसी समय यहाँ पर फारस से मुस्लिम शासकों के साथ सूफी संत भी आये | इससे यहाँ पर ऋषि परम्परा त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम देखने को मिलता है | इसमें कही भी कट्टरवादिता नहीं देखने को मिलती थी, इसे ही कश्मीर की कश्मीरियत कहा गया है |

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मध्य काल

भारत में मुस्लिम सभ्यता के आगमन के बाद कश्मीर 1589 में मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया | इस समय मुग़ल बादशाह अकबर महान का शासन था | अकबर को हिन्दू-मुस्लिम की एकता स्थापित करने के लिए के महान शासक के रूप में जाना जाता है | मुगल साम्राज्य के बाद कश्मीर पर पठानों का कब्जा हो गया था | इस समय कश्मीर में किसी भी प्रकार का विकास नहीं किया गया | वर्ष 1814 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को शिकस्त दी और वहां पर सिख साम्राज्य की स्थापना की |

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आधुनिक काल

आधुनिक काल में अंग्रेजो और सिखों के बीच युद्ध हुआ जिसमें सिक्खों को हार का सामना करना पड़ा | इसी हार के स्वरूप लाहौर संधि की गयी | जिसके अनुसार गुलाब सिंह को कश्मीर का स्वतंत्र शासक बना दिया गया | गिलगित का क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन रहा | गिलगित क्षेत्र को कश्मीर से बाहर माना जाता था | महाराजा गुलाब सिंह के बाद उनके बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 ई. में कश्मीर के राजा बने इन्होंने 1947 ई. तक कश्मीर पर शासन किया |

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भारत और पाकिस्तान विभाजन (India and Pakistan Partition)

वर्ष 1947 में कैबिनेट मिशन के द्वारा भारत को स्वतंत्रता प्रदान की गयी | इसमें सबसे दुर्भाग्यवश भारत को पाकिस्तान से अलग करने की स्वीकृति प्रदान कर दी गयी | जिसके बाद सभी रियासतों को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में शामिल होने की छूट प्रदान की गयी | कश्मीर ने अपने को स्वतंत्र रखना चाहता था इसलिए वह न भारत में शामिल हुआ न ही पाकिस्तान में उस समय कश्मीर के राजा हरी सिंह थे |

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पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर कब्ज़ा करने का प्रयास

पाकिस्तान किसी भी कीमत पर कश्मीर पर कब्ज़ा करना चाहता था, लेकिन अंग्रेजी प्रभाव के कारण वह खुल कर सामने नहीं आ सका था | पाकिस्तान ने कश्मीर की आपूर्ति व्यवस्था को काट दिया पाकिस्तान को विश्वास था की इससे महाराजा हरी सिंह पाकिस्तान में मिलने की स्वीकृति दे देंगे, लेकिन उन्होंने इसकी स्वीकृति नहीं दी |

इसके बाद पाकिस्तान ने वहां के पठानों को उकसाया और उन्हें कश्मीर में हमला करने के लिए संसाधन उपलब्ध करा दिए | जिन्ना के कहने पर 20 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया गया | जिसके बाद कश्मीर में हालात बहुत ही ख़राब हो गए पाकिस्तान सेना ने वहां पर लूट और हत्याएं करनी शुरू कर दी | इस परिस्थिति से घबरा कर महाराजा हरी सिंह ने भारत से सहायता की मांग की |

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विलय पत्र पर हस्ताक्षर (Sign the Merger Letter)

भारत ने महाराजा हरी सिंह से भारत में विलय की शर्त रखी, जिसके बाद 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरी सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए गए | इस विलय पत्र में केवल तीन विषयों का ही उल्लेख किया गया जोकि आगे चल के विवाद की जड़ माना जाता है, इसके अनुसार कश्मीर की रक्षा, विदेशी मामले और संचार को भारत के अधीन कर दिया गया | इसके अतिरिक्त अन्य मामले कश्मीर के पास रखे गए |

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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK)

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) कश्मीर का उत्तरी भाग है | इस भाग पर पाकिस्तान ने 1947 पर हमला करके इस पर कब्ज़ा कर लिया था | भारत के द्वारा इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र ले जाने के कारण इस पर कार्यवाही नहीं की जा सकी | पाकिस्तान ने इसे प्रशासनिक रूप से दो भागों में बांट दिया पहले भाग को आज़ाद जम्मू-ओ-कश्मीर तथा दूसरे भाग को गिलगित-बल्तिस्तान कहा गया |

पाक अधिकृत कश्मीर में प्रशासन का प्रमुख राष्ट्रपति होता है लेकिन व्यवहारिक रूप से उसकी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री करता है | प्रधानमंत्री एक मंत्री परिषद् के द्वारा प्रशासन को चलाता है | लेकिन वास्तविक रूप से यहाँ का प्रशासन पाकिस्तान के दिशा- निर्देश पर चलता है | आज़ाद कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद है और इसमें 8 ज़िले, 19 तहसील और 182 संघीय काउन्सिलें हैं |

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पी.ओ.के. वर्तमान राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री

पाक अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति मसूद खान और प्रधानमंत्री राजा फारूक हैदर खान है, पीओके में दिखावे के लिए सरकार का गठन किया गया है, परन्तु इसका संचालन पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार के द्वारा जाता है | इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनायीं जाती है, जिससे भारत पर हमला किया जा सके | वास्तविक रूप इस क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना का प्रशासन चलता है, जोकि भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देती है |

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यहाँ पर हमनें जम्मू कश्मीर का इतिहास के विषय में जानकारी उपलब्ध करायी है, यदि इस जानकारी से सम्बन्धित आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न आ रहा है, अथवा इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो कमेंट बाक्स के माध्यम से पूँछ सकते है,  हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार कर रहे है |

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