एक देश एक चुनाव का मतलब क्या है?

एक देश एक चुनाव (ONE NATION ONE ELECTION) के विषय में जानकारी

लोकतंत्र में जनता के मतदान के द्वारा सरकार का गठन किया जाता है, इस सरकार में जनता के प्रतिनिधि होते है, जोकि देश और जनता की आवश्यकता का ध्यान में रखते हुए नीति का निर्धारण करते है, इस नीति को लागू करवाना शासन के अधिकारी वर्ग के अंतर्गत आता है, जिसकी जमीनी स्तर पर जाँच जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा की जाती है, प्रत्येक सरकार के गठन के लिए चुनाव, निर्वाचन आयोग के द्वारा कराया जाता है, जिसमें करोड़ों रुपयों का व्यय होता है, इस पेज पर एक देश एक चुनाव के विषय में जानकारी दी जा रही है |

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एक देश एक चुनाव का मतलब क्या है (THE MEANING OF ONE NATION ONE ELECTION)

भारत को 1947 में आजादी प्राप्त हुई थी, तब से लेकर सत्रह बार लोकसभा का गठन किया जा चुका है | इसके साथ ही राज्यों की विधान सभा के लिए अनेकों बार चुनाव का आयोजन किया जा चुका है, भारत में सभी प्रकार के चुनाव निर्वाचन आयोग के द्वारा सम्पादित कराये जाते है, इस प्रकार से भारत में प्रत्येक छ : महीने में किसी न किसी राज्य में चुनाव का आयोजन किया जाता है | इस चुनाव की तैयारी करने और इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था में करोड़ों रुपयों का खर्च आ जाता है, यह सारा खर्च आम जनता द्वारा दिए गए टैक्स से अर्जित किया जाता है, इस प्रकार से सरकार के टैक्स रूपी आय का एक बड़ा भाग इस चुनावों में खर्च हो जाता है, इसको कम करने के लिए एक देश एक चुनाव की योजना पर कार्य किया जा रहा है |

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क्या है एक देश, एक चुनाव 

यदि देश में एक देश, एक चुनाव नीति लागू होती है, तो देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव पूरे देश में 5 साल में केवल एक बार ही कराये जायेंगे | इससे देश पर बार-बार पड़ने वाले आर्थिक बोझ को कम किया जा सकता है | इसके अतिरिक्त लगने वाले समय की बचत भी होगी | वर्तमान समय में इस नीति में केवल लोकसभा और विधानसभा को एक साथ ही कराने पर विचार किया जा रहा है, भविष्य में नगरीय निकायों के चुनावों को भी इस श्रंखला में जोड़ा जा सकता है | एक साथ चुनाव कराने के लिए बहुत ही बड़े स्तर पर तैयारी और व्यवस्थाओं को करने की आवश्यकता होगी, इसमें मुख्य भूमिका निर्वाचन आयोग की होगी |

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एक देश एक चुनाव से लाभ (ADVANTAGES)

लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने पर इस प्रकार के लाभ होंगे-

आर्थिक बोझ में कमी 

लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करने पर सरकारी खर्च में भारी कमी आएगी | इस धन का प्रयोग देश के विकास में किया जा सकेगा | मिडिया द्वारा प्राप्त जानकारी के मुताबिक 2009 के लोकसभा चुनाव में 1100 करोड़ और 2014 के लोकसभा चुनाव में 4000 करोड़ रुपए खर्च आया था | वर्ष 2019 में हुए चुनाव में प्रति मतदाता खर्च 72 रुपए की गणना की गयी है | इसमें उम्मीदवारों द्वारा किये खर्च को शामिल नहीं किया गया है, उम्मीदवारों के खर्च को शामिल करने पर यह खर्च लगभग 60 हजार करोड़ आता है | इतनी बड़ी धनराशि का प्रयोग किसी बड़ी परियोजना को शुरू करने में किया जा सकता है |

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कालेधन पर रोक 

लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बहुत बड़े स्तर पर काले धन का प्रयोग किया जाता है, जिससे मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके | एकसाथ चुनाव होने पर निश्चित रूप से इस पर अंकुश लगाया जा सकता है |

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सौहार्द में बढ़ोत्तरी 

सामान्यतः देखा गया है कि चुनावों के समय धर्म और जाति जैसे मुद्दे प्रमुखता से उठाए जाते हैं | जिससे एक समुदाय का दूसरे समुदाय के प्रति ईर्ष्या भाव उत्पन्न होता है, जिससे बड़ी- बड़ी घटनाओं को अंजाम दे दिया जाता है, यदि चुनाव केवल 5 साल में ही होंगे तो इस प्रकार के मुद्दे अधिक नहीं उठाये जा सकता है, जिससे ईर्ष्या भाव कम होगा और शांति की स्थापना की जा सकती है |

एक देश एक चुनाव से हानि (DISADVANTAGES)

एक साथ चुनाव होने पर हानि इस प्रकार है-

क्षेत्रीय पार्टियाँ (REGIONAL PARTIES)

यदि एक साथ चुनाव का आयोजन किया जाता है, इसमें सबसे अधिक हानि क्षेत्रीय पार्टियों को होंगी | क्षेत्रीय पार्टियाँ अपने सीमित संसाधनों के साथ चुनाव लड़ेंगी, लेकिन राष्ट्रीय पार्टियाँ अपनी पूरे संसाधन का प्रयोग करते हुए चुनाव लड़ेंगी | इस प्रकार से क्षेत्रीय पार्टियाँ राष्ट्रीय पार्टियों का मुकाबला नहीं कर पाएंगी |

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क्षेत्रीय मुद्दे 

लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ चुनाव होने पर क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जायेंगे इन पर अधिक ध्यान नहीं दिया जायेगा | चुनावी सभाओं में क्षेत्रीय से अधिक राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की जाएगी | जिससे कम विकसित क्षेत्रों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा सकता है |

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चुनावी उपकरण में खर्च (EXPENSES)

निर्वाचन आयोग ने एक साथ चुनाव कराने के लिए नए ईवीएम और पेपर ट्रेल मशीनों को खरीदने के लिए लगभग 4500 करोड़ रुपए से अधिक की आवश्यकता बताई है |

संविधान संसोधन (CONSTITUTION AMENDMENT)

इस प्रकार की पहल को अच्छा माना जा रहा है, लेकिन यह संभव तभी है, जब विधायिकाओं का कार्यकाल निर्धारित करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये जिससे मध्य चुनाव की सम्भावना को समाप्त किया जा सके है |

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यहाँ हमने एक देश एक चुनाव के विषय में जानकारी प्रदान की है। यदि इस जानकारी से संबंधित आपके मन में कोई प्रश्न है या अधिक जानकारी चाहते हैं, तो कृपया कमेंट बॉक्स का उपयोग करें। हम आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार करेंगे।

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