डोपिंग टेस्ट (Doping Test) क्या होता है

डोपिंग टेस्ट से सम्बंधित जानकारी (About Doping Test) 

वर्तमान समय में खिलाड़ी अपने प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए सप्लीमेंट्स और एनर्जी ड्रिंक का प्रयोग कर रहे हैं। आम तौर पर एक खिलाड़ी का करियर छोटा होता है, और वह अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही अमीर और मशहूर हो सकते हैं| इसी जल्दबाजी और शॉर्टकट तरीके से शॉट टर्म में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं| यह खिलाडिय़ों को अच्छा लगता है, परन्तु आगे चलकर यह खिलाडिय़ों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होता है| यह बीमारी केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में फैली हुई है| डोपिंग में अब तक कई दिग्गज खिलाड़ी फंस चुके हैं। डोपिंग टेस्ट (Doping Test) क्या होता है, और   डोपिंग परीक्षण कैसे होता है? इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहे है|

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डोपिंग टेस्ट क्या होता है (Doping Test)

एक खिलाड़ी की लाइफ में आने वाला नाम, पैसा और उनकी प्रशंसा उनके कठिन परिश्रम का परिणाम होता है, और उनके इस करियर की उम्र अधिक नहीं होती। अपने करियर के दौरान बेहतरीन प्रदर्शन करने पर ही एक खिलाड़ी मशहूर और सभी का चहेता बनता है| करियर को ऐसी छलांग देने के लिए कुछ खिलाड़ी शॉर्टकट लेना पसंद करने लगते हैं, अर्थात कुछ प्रतिबंधित सप्लीमेंट्स और एनर्जी ड्रिंक का प्रयोग करते है| यह शॉर्टकट लेना डोपिंग कहलाता है| इसे कोई भी खिलाड़ी लिक्विड फॉर्म में इंजेक्शन के रूप में या प्रतिबंधित पाउडर खाकर या उसे पानी में घोलकर ले सकता है। इसे खाने-पीने की चीज में मिला कर भी लिया जा सकता है।

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दूसरे शब्दों में डोपिंग का मतलब है, कि खिलाड़ियों द्वारा उन पदार्थों का सेवन करना जो उनकी शारीरिक क्षमता बढ़ाने में मदद करें। इससे वह अपनी क्षमता से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं।

खिलाडिय़ों द्वारा अपनी ताकत बढ़ाने वाली दवाओं के इस्तेमाल को पकड़ने के लिए डोप टेस्ट किया जाता है। किसी भी खिलाड़ी का डोप टेस्ट किसी भी समय लिया जा सकता है। किसी इवेंट से पहले या ट्रेनिंग कैंप के दौरान डोप टेस्ट में खिलाड़ियों के यूरिन लिया जाता है। यह टेस्ट नाडा NADA (नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) या वाडा WADA (वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी) द्वारा कराए जाते हैं। इसमें खिलाड़ियों के यूरिन को वाडा या नाडा की खास लैब में टेस्ट किया जाता है। नाडा की लैब दिल्ली में और वाडा की लैब्स दुनिया में कई स्थानों पर हैं। डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच अलग-अलग श्रेणी में विभाजित किया गया है। स्टेरॉयड, पेप्टाइड हॉर्मोन, नार्कोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग।

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1.स्टेरॉयड (Steroids)

हमारे शरीर में स्टेरॉयड पहले से ही मौजूद होता है, जैसे टेस्टेस्टेरॉन। पुरुष खिलाड़ी अपने शरीर में मासपेशियां को बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं, जो उनके शरीर की मासपेशियों को तेजी से बढ़ा देता है।

2.पेप्टाइड (Peptide)

स्टेरॉयड की भांति पेप्टाइड हॉर्मोन भी शरीर में मौजूद होता हैं|  इंसुलिन नाम का हॉर्मोन डायबीटीज के मरीजों के लिए जीवन रक्षक हॉर्मोन है, यदि एक स्वस्थ व्यक्ति को इंसुलिन दिया जाए तो इससे शरीर से फैट घटने लगती है और मसल्स बनती हैं।

3.नार्कोटिक्स (Narcotics)

डोपिंग में सबसे अधिक नार्कोटिक्स, नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां इस्तेमाल होती हैं। खेल के दौरान दर्द का अहसास होने पर अक्सर खिलाड़ी इन दवाइयों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं।

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4.डाइयूरेटिक्स (Diuretics)

डाइयूरेटिक्स शरीर से पानी को बाहर निकाल देता है। इसे कुश्ती या बॉक्सिंग जैसे मुकाबलों में अपना वजन घटा कर कम वजन वाले वर्ग में एंट्री लेने के खिलाड़ी इसका प्रयोग सबसे अधिक करते हैं।

5.ब्लड डोपिंग (Blood Doping)

इसमें खिलाड़ी कम उम्र के लोगों का ब्लड खुद को चढ़ाते हैं। इसे ब्लड डोपिंग कहा जाता है। कम उम्र के लोगों के ब्लड में रेड ब्लड सेल्स अधिक होते हैं, जो खूब ऑक्सीजन खींच कर जबरदस्त ताकत देते हैं।

क्या है वाडा और नाडा (WADA And NADA)

किसी भी खिलाड़ी का डोप टेस्ट विश्व डोपिंग विरोधी संस्था (वाडा) या राष्ट्रीय डोपिंग विरोधी (नाडा) द्वारा लिया जा सकता है| अंतरराष्ट्रीय खेलों में ड्रग्स के बढ़ते चलन रोकने के लिए वाडा की स्थापना 10 नवंबर, 1999 को स्विट्जरलैंड के लुसेन शहर में की गई थी| इसके बाद लगभग प्रत्येक देश में नाडा की स्थापना की जाने लगी| इसके दोषियों को 2 साल सजा से लेकर आजीवन प्रतिबन्ध  तक सजा का प्रावधान है|

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डोपिंग परीक्षण कैसे होता है (Doping Test)

किसी भी खिलाड़ी का किसी भी डोप टेस्ट किसी भी समय नाडा या वाडा या फिर दोनों की ओर से लिया जा सकता है, और इसका नमूना एक बार ही लिया जाता है। पहले चरण को ए और दूसरे चरण को बी कहते हैं। ए पॉजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यदि खिलाड़ी चाहे तो एंटी डोपिंग पैनल से बी-टेस्ट सैंपल के लिए अपील कर सकता है। यदि खिलाड़ी बी-टेस्ट सैंपल में भी पॉजीटिव आ जाए तो उस सम्बंधित खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।

खिलाड़ी के शरीर में डोपिंग की जांच के लिए एक लंबे समय से स्थापित तकनीकी मास स्पेक्ट्रोमेट्री का प्रयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत खिलाड़ी के यूरिन सैंपल को आयोनाइज करने के लिए इलेक्टॉन्स से फायर किया जाता है, इससे अणुओं को चार्ज्ड पदार्थ में परिवर्ति कर दिया जाता है, इलेक्ट्रॉन्स को जोड़कर व हटाकर।

जितने भी पदार्थ सबमें एक सबसे अलग ‘फिंगरप्रिंट’ होता है। जैसा कि वैज्ञानिकों को पहले से ही कई स्टेरॉइड्स का भार पता होता है, इसलिए वह तुरंत पहचान जाते हैं कि डोपिंग वाला सेंपल कौन सा है। कुछ डोपिंग के बाई- प्रोडक्ट इतने छोटे होते हैं, कि उनसे इतने सिग्नल ही नहीं मिलते कि उन्हें डिटेक्ट किया जा सके। ब्लड टेस्टिंग के माध्यम से ईपीओ और सिनथेटिक ऑक्सीजन कैरियर्स को जांचा जा सकता है, परन्तु ब्लड ट्रांसफ्यूजन को नहीं जांचा जा सकता। इस तरह से ब्लड ट्रॉसफ्यूजन को जांचने के लिए एक नया सिस्टम है, जिसका नाम बायोलॉजिकल पासपोर्ट है। साल 2009 में वाडा में लाए गए पासपोर्ट से डोपिंग के प्रभाव को जांचा जा सकता है।

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भारत में डोपिंग का पहला मामला (First Case Of Doping in India)

भारत में डोपिंग का मामला पहली बार 1968  में सामनें आया| यह घटना 1968 के मेक्सिको ओलिंपिक ट्रायल की है। दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गए थे। उस दौरान कृपाल सिंह के मुंह से झाग निकलने लगा था और वह बेहोश हो गए। जांच में पता चला कि कृपाल ने ताकत बढ़ाने वाला पदार्थ ले रखा था, ताकि वह मेक्सिको ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर सकें। इसके बाद भारत में डोपिंग के कई मामले सामने आने शुरू हो गए।

ओलंपिक में डोपिंग का पहला मामला (First Case Of Doping in Olympics)

वर्ष 1896 में ओलंपिक खेलों की शुरुआत हुई और 1904 के सेंट लुई ओलंपिक में डोपिंग का पहला मामला प्रकाश में आया। इसके ठीक 100 वर्ष बाद अर्थात वर्ष 2004 में एथेंस में डोपिंग के पिछले सारे रिकॉर्ड टूटे, क्योंकि इस ओलंपिक में सबसे अधिक 27 खिलाड़ियों को प्रतिबंधित दवा सेवन का दोषी पाया गया। खेलों में प्रतिबंधित दवा के सेवन के बढ़ते चलन के कारण विभिन्न खेल संघों ने 1960 के दशक के शुरुआती वर्षों में डोपिंग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया जिसे अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने 1967 में अपनाया और पहली बार 1968 के मैक्सिको सिटी ओलिंपिक में इसे लागू किया।

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यहाँ पर हमनें डोपिंग टेस्ट के बारें में बताया| यदि इस जानकारी से सम्बन्धित आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न आ रहा है, अथवा इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो कमेंट बाक्स के माध्यम से पूँछ सकते है,  हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार कर रहे है|

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