क्रिकेट में पावरप्ले (Powerplay)
आधुनिक समय में क्रिकेट एक ऐसा मनोरंजक खेल बन गया है जिसकी लोकप्रियता भारत में ही नहीं पूरे विश्व में देखने को मिलती है | क्रिकेट को संभावनाओं का खेल माना जाता है, जिसमे बीते दशकों में कई तरह के महत्वपूर्ण बदलाव होते आ रहे है | जिसमे 5 दिन के लम्बे टेस्ट से लेकर 60 ओवर के एक दिवसीय प्रारूप से निकला क्रिकेट आज नए जमाने के नए नियमों में तब्दील हो गया है |
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आज के समय में 50 ओवर का वन डे क्रिकेट तो है ही उसके साथ 20 ओवर के टी20 ने तो क्रिकेट को और भी ज्यादा मनोरंजक बना दिया है | क्रिकेट बदलने के साथ साथ खिलाडी और शार्ट भी बदल गए है | इन्हीं बदलावों में एक बदलाव पावरप्ले (Powerplay) का 1996 विश्व कप में लागू करके किया गया | इस बदलाव के बाद क्रिकेट जगत में एक क्रांति सी आ गई, और देखते – देखते यह खेल लोगों में लोकप्रियता के उच्चतम मुकाम पर पहुँच गया है |
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और कैसे हुई शुरुआत
किसी भी क्रिकेट फॉर्मेट में पावरप्ले (Powerplay) को आधुनिक क्रिकेट की आत्मा माना जाता है और टेस्ट क्रिकेट में कोई पावर प्ले नहीं होता। पहली बार 1970 में पावरप्ले को क्रिकेट के एक प्रयोग के रूप में बदलाव किया गया था। इसका प्रयोग सबसे पहले ‘वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट’ में किया गया था । परन्तु इसके बाद भी पावरप्ले को पहले पांच विश्व कप में स्थान नहीं शामिल किया गया | पहली बार इस पावरप्ले के इस नियम को 1996 के ‘विश्व कप’ में लागू किया गया।
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इसके बाद से ही पावरप्ले एक दिवसीय (One Day) क्रिकेट का सबसे पसंदीदा पार्ट बन गया। पावरप्ले ने उस वर्ल्ड कप के बाद कई आतिशी सलामी बल्लाबाजों को जन्म दिया जो आते ही विरोधी गेंदबाजों पर चौके – छक्के बरसाने लगते थे। उस समय में पावरप्ले में सर्वाधिक सफल होने वाले बल्लेबाजों में श्रीलंका के खिलाडी सनथ जयसूर्या का नाम टॉप पर आता है |
उस समय भी पॉवरप्ले आज के समय के पावरप्ले की तरह होता था परन्तु वह 15 ओवरों का होता था | परन्तु यह पावरप्ले मेंडेटरी पावरप्ले होता था जो पहले 15 ओवरों तक लागू होता था। इस पावरप्ले के समय दो खिलाड़ियों को 30 गज के घेरे के बाहर रहने का नियम था। 16वें ओवर के बाद से घेरे के बाहर पांच खिलाड़ी रखने का नियम होता था |
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वर्तमान में पावरप्ले का नियम (Rule Of Power play)
क्रिकेट में एक समय ऐसा आया जब फटाफट प्रारूप यानी T20 क्रिकेट का क्रेज बढ़ रहा था। फिर पावरप्ले ने जैसे ही क्रिकेट को और ज्यादा मनोरंजक बनाया वैसे ही इंटरनैशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने 2005 में इसमें बदलाव कर दिए और लगातार लोकप्रियता बढ़ाने के लिए और बदलाव किये। जिसमें पावरप्ले को 15 ओवर का न रखकर, 20 ओवरों का कर दिया गया और इसे तीन ब्लॉकों में बांट दिया गया। इसमें एक था मेंडेटरी पावरप्ले जिसे अनिवार्य पावरप्ले कहते है, दूसरा था बॉलिंग पावर प्ले और तीसरा बैटिंग पावर प्ले बनाया गया।
तीनों पावर प्ले का उद्देश्य बैटिंग करने वाली टीम को तेजी से रन बनाये, ताकि खेल मनोरंजक और रोमांचक किया जा सके। 20 ओवरों के फॉर्मेट में पावरप्ले 6 ओवर का होता है, जिसमें केवल एक ही पॉवर प्ले होता है अनिवार्य पावरप्ले , बैटिंग और बॉलिंग पावर प्ले नहीं होता | टेस्ट क्रिकेट में पावर प्ले का कोई भी नियम नहीं होता |
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1.मेंडेटरी पावरप्ले (अनिवार्य पावरप्ले):
शुरुआत के 10 ओवर तक अनिवार्य पावरप्ले होता हैं। जिसके नियमानुसार फील्डिंग टीम 30 गज घेरे के बाहर केवल 2 ही खिलाडी रख सकती है। इसमें दोनों फील्डरों को कैच करने वाली पोजिशन में रखने का नियम है। ये प्लेयर स्ट्राइकिंग बैट्समैन से 15 गज से ज्यादा की दूरी पर नहीं रखे जाते हैं।
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2.Bowling Power Play (बॉलिंग पावरप्ले):
इस पॉवरप्ले का यूज़ 10 ओवर के तुरंत बाद भी किया जा सकता है। यह केवल 5 ओवर का ही होता हैं। परन्तु इसका प्रयोग फील्डिंग कर रही टीम द्वारा ही किया जा सकता है। इस पावरप्ले में तीन प्लेयर्स को 30 गज के घेरे के बाहर रखना होता है, परन्तु इसको 40 ओवरों तक खत्म करना आवश्यक होता है।
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3.Batting Power Play (बैटिंग पावर प्ले):
यह पावर प्ले भी बॉलिंग पावरप्ले के ही समान 5 ओवर का होता है, परन्तु इसे बैटिंग कर रही टीम अपने अनुसार कभी ले सकती है। इस दौरान 30 गज के घेरे के बाहर 3 से ज्यादा फील्डर नहीं रख सकते है।
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