ए पी जे अब्दुल कलाम की खोज

ए पी जे अब्दुल कलाम 

ए पी जे अब्दुल कलाम भारत के महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति थे, जिन्होंने जीवन पर्यन्त देश की सेवा में अपना जीवन बिताया, इनका जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ था, इन्हीं के प्रयासों से भारत एक परमाणु संम्पन्न राष्ट्र बन पाया | इन्होंने चार दशक तक वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया | इस बीच उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन और रक्षा शोध और विकास संगठन में अपना अभूतपूर्व योगदान देकर देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसित किया, इस पेज पर ए पी जे अब्दुल कलाम की खोज, मृत्यु कैसे हुई ? आदि के बारें में आपको विस्तार से बता रहे है  |

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ए पी जे अब्दुल कलाम की खोज

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ए पी जे अब्दुल कलाम वर्ष 1962 में  ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ ज्वाइन किया | इनकों  भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय प्राप्त है, कलाम जी को भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक के रूप में माना जाता है |

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इन्होंने 20 वर्ष तक भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन में कार्य किया और लगभग इतना समय ही उन्होंने रक्षा शोध और विकास संगठन में दिया | वह 10 वर्षों तक डीआरडीओ के अध्यक्ष भी रहे, इसके साथ ही उन्होंने रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार की भूमिका का भी निर्वहन किया | इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी मिसाइलों के लिए स्वदेशी तकनीक का निर्माण किया, जिस कारण से इन्हें मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है |

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पुस्तक

ए पी जे अब्दुल कलाम जी ने साहित्यक रूप से अपने विचारों को 4 पुस्तकों में विभाजित किया है |

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  • इंडिया 2020 ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम |
  • माई जर्नी |
  • इग्नाइटेड माइंड्स |
  • अनलीशिंग द पावर विदीन इंडिया |

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निधन

27 जुलाई 2015 को शाम के समय में डॉ कलाम शिलोंग में योग्य ग्रह पर अपना लेक्चर दे रहे थे, उस समय अचानक लेक्चर देते समय उनको दिल का दौरा पड़ गया और वह जमीन पर गिर गए, उनको तुरंत ही अस्पताल ले जाया गया, जहाँ पर उन्हें मृत्यु घोषित कर दिया गया | मेघालय के राज्यपाल तत्काल अस्पताल पहुंचे और चिकित्सा सुविधाओं का निरीक्षण किया परन्तु शाम 7 बजकर 45 मिनट उनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गयी |

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कहानी

कलाम जी अपने आप को कभी बड़ा व्यक्ति नही मानते थे, वह अपने को सबके समकक्ष ही मानते थे | एक बार उनको वाराणसी में आईआईटी (BHU) के दीक्षांत समारोह में निमंत्रण देकर बुलाया गया, जिसको उन्होंने स्वीकार्य कर लिया, दीक्षांत समारोह में जब वह गए तो, उन्होंने देखा की स्टेज पर पांच कुर्सियां लगायी गयी, उनमें से बीच वाली कुर्सी बड़ी थी, जिसपर उन्हें बैठने को कहा गया, कलाम जी ने उस कुर्सी पर बैठने के लिए मना कर दिया, उन्होंने कहा कि ‘मै भी आप लोगो के बराबर का ही व्यक्ति हूँ, अगर सम्मान करना है, तो इस पर कुलपति जी को बैठाईए’, जिसके बाद उस कुर्सी को स्टेज से हटा दिया गया और स्टेज की अन्य कुर्सी की तरह ही दूसरी कुर्सी को लगाया गया | अब्दुल कलाम कुरान और गीता दोनों का अध्धयन करते थे | वह किसी भी ग्रन्थ को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे |

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