हिन्दू (भारतीय) नव वर्ष और पंचांग की जानकारी (About Indian New Year & Panchang)
पाश्चात्य सभ्यता के अनुसार हम नया वर्ष 1 जनवरी को मनाते हैं, परन्तु हिंदू नव वर्ष (Hindu New Year) 1 जनवरी को नहीं बल्कि चैत्र (Chaitra) महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को मनाया जाता है। जो प्रतिवर्ष मार्च के अंत या अप्रैल महीने में होता है। हिंदू नववर्ष के पहले दिन को नव संवत्सर भी कहा जाता है, जिसे विक्रम संवत भी कहते हैं। हिंदू नववर्ष हर साल चैत्र प्रतिपदा से शुरू हो जाता है, परन्तु भारत में लोक मान्यताओं और स्थानीय रीति रिवाज़ों में भिन्नता होने के कारण यह अलग- अलग दिन से भी शुरू माना जाता है| महाराष्ट्र चैत्र प्रतिपदा से ही हिंदू नववर्ष का आगाज़ होता है, जिसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है, जबकि पंजाब में 13 अप्रैल को बैसाखी से नए साल का आगाज़ माना जाता है। आंध्र प्रदेश में इसे उगादी कहा जाता है। हिन्दू (भारतीय) नव वर्ष कब मनाया जाता है, इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहे है|
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हिन्दू (भारतीय) नव वर्ष कब मनाया जाता है (When Is The Indian New Year Celebrated)
पूरी दुनिया में नया वर्ष एक जनवरी को मनाया जाता है, परन्तु भारत में नया वर्ष दो बार मनाया जाता है| एक अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को और दूसरा भारतीय कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाता है| इसे नवसंवत्सर कहते हैं| अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाए जाने नए साल पर ठंड का मौसम होता है, वहीं भारतीय नव वर्ष पर मौसम सुहावना होता है| वसंत ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है| जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंध से भरी होती है| फसल पकने का प्रारंभ, किसानों की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है|
एक अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में 96 अलग-अलग प्रकार के कैलेंडर हैं। भारत में केवल 36 कैलेंडर या पंचांग हैं। इनमें से 12 आज भी प्रचलित हैं, जबकि 24 प्रचलितता से बाहर हो चुके हैं। इस समय दुनिया में जितने कैलेंडर प्रचलित हैं, उनमें से अधिकांश का नया साल फरवरी से अप्रैल के बीच आरंभ होता है।
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हिंदू नववर्ष का महत्व (Importance of Hindu New Year)
हिंदू नववर्ष या हिंदू कैलेंडर (Hindu Calendar) के महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है, कि आज भी हम अपने व्रत एवं त्यौहार हिंदू कैलेंडर और हिंदू तिथियों के आधार पर ही मनाते हैं। घर में शादी या फिर कोई और शुभ कार्य सभी कुछ हिंदू कैलेंडर या पंचांग देखकर ही किए जाते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्ना ने सृष्टि की रचना शुरू की थी, जिसके कारण इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
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पंचाग का अर्थ (Meaning of Panchag)
हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज का एक प्रमुख कैलेंडर है, जो भारत भर में उपयोग में आता है। इसका नाम इसके पांच प्रमुख भागों से होता है, जो तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं। यही हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित परंपरागत कैलेंडर होता है।
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भारत में पंचांग का इतिहास (History Of Panchag In India)
देश में सबसे अधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक संवत है। इसके प्रणेता मालवा के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य माने जाते हैं। उन्होंने समस्त प्रजा का ऋण चुकाकर यह संवत् शुरू किया था। माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जयनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था। यह संवत 57 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। इसे मालव संवत् भी कहा जाता है। इसमें कालगणना सूर्य और चंद्र के आधार पर की जाती है। यह चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र नवरात्र के साथ प्रारंभ होता है।
चैत्र नवरात्र के साथ ही भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नए वर्ष का आगमन मनाया जाता है, जैसे गुड़ी पड़वा, उगादी, और चेटीचंड। यह शक संवत के रूप में भी जाना जाता है, जिसे सम्राट कनिष्क ने 78 ईसा पूर्व में शुरू किया था। भारत सरकार ने स्वतंत्रता के बाद इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया। राष्ट्रीय संवत का नव वर्ष 22 मार्च को होता है, लीप ईयर में यह 21 मार्च को होता है।
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पंचांग के पांच अंग (Five Parts Of Panchang)
1.नक्षत्र
पंचांग का पहला अंग नक्षत्र है| ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 प्रकार के होते हैं, परन्तु मुहूर्त निकालते समय एक 28वां नक्षत्र भी गिना जाता है, जिसे अभिजीत नक्षत्र कहते है| शादी, ग्रह प्रवेश, शिक्षा, वाहन खरीदी आदि करते समय नक्षत्र देखे जाते हैं|
2.तिथि
पंचांग का दूसरा अंग तिथि होता है। तिथियाँ 16 प्रकार की होती हैं, जिसमें पूर्णिमा और अमावस्या मुख्य होती हैं। ये दोनों तिथियाँ महीने में एक बार जरूर होती हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार, महीने को शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में बांटा गया है। अमावस्या और पूर्णिमा के बीच की अवधि को शुक्ल पक्ष कहा जाता है, जबकि पूर्णिमा और अमावस्या के बीच की अवधि को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। ऐसा मान्यता है कि कृष्ण पक्ष के समय ज्यादातर शुभ कार्य नहीं किए जाते क्योंकि इस समय चंद्रमा की शक्तियाँ कमजोर होती हैं और अंधकार छाया रहता है। इसलिए, शादी आदि का निर्णय शुक्ल पक्ष के समय ही किया जाता है।
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3.योग
पंचांग का तीसरा अंग योग है| योग किसी भी व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं| पंचांग में 27 प्रकार के योग माने गए हैं| इसके कुछ प्रकार है- विष्कुंभ, ध्रुव, सिद्धि, वरीयान, परिधि, व्याघात आदि|
4.करण
पंचांग का चौथा अंग करण है| तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है| मुख्य रूप से 11 प्रकार के करण होते हैं, इनमें चार स्थिर होते हैं और सात अपनी जगह बदलते हैं| बव, बालव, तैतिल, नाग, वाणिज्य आदि करण के प्रकार हैं|
5.वार
पंचांग का पांचवा अंग वार है| एक सूर्योदय से दूसरे सर्योदय के बीच की अवधि को वार कहा जाता है| रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, और शनिवार, सात प्रकार के वार होते हैं, इनमें सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को शुभ माना गया हैं|
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