जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (खेती) कैसे करे
भारत में आज भी खेती करने की पुरानी तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिससे खेती की लागत अधिक हो जाती है और अंत में जब फसल की पैदावार होती है, तो फसल का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता है, जिससे किसान कर्ज लेते है और उनकीं आर्थिक स्थित और कमजोर हो जाती है | सुभाष पालेकर हमारे देश के कृषि विशेषज्ञ है, इन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (खेती) करने का सुझाव दिया है | इस खेती में लागत नहीं आती है और इससे उत्पन्न अनाज अति शुद्ध होता है | जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (खेती) कैसे करें ? इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहें है |
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जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (खेती) नाम कैसे पड़ा ?
इस तकनीक के अंतर्गत किसानों को बाजार से किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद या केमिकल्स को नहीं खरीदना पड़ता है | जिससे खेती की लागत शून्य रुपये आती है | इसलिए इस खेती को जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (खेती) कहा जाता है |
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (खेती) क्या है ?
यह एक कृषि प्रयोग है, जिसमे किसी भी उर्वरक और कीटनाशकों या केमिकल का प्रयोग किये बिना फसल को उगाया जाता है, इस प्रकार जो फसल उगाई जाती है, उसमे प्राकृतिक खाद का प्रयोग किया जाता है |
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जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के लाभ
इस प्रकार की खेती के लाभ इस प्रकार है-
काम लागत लगना
इस खेती में प्राकृतिक खाद का प्रयोग किया जाता है, जिससे बाजार से उर्वरक और खाद की बचत होती है, जिससे फसल की लागत में कमी आती है |
भूमि के लिए लाभ दायक
इस प्रकार की खेती में केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है, जिससे भूमि की उर्वरता शक्ति बनी रहती है, केमिकल का प्रयोग करने से धीमे-धीमे भूमि की उर्वरता शक्ति में कमी आती रहती है | प्राकृतिक खाद के द्वारा उर्वरता शक्ति बढ़ती रहती है |
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जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की तकनीक
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग में चार तकनीक का प्रयोग किया जाता है |
1.जीवामृत
2.बीजामृत
3.आच्छादन मल्चिंग
4.व्हापास
जीवामृत
यह एक उत्प्रेरक होता है, जो मिट्टी में सूक्ष्म जीवों के बीच गति विधि को तेज कर देता है, जीवामृत की सहायता से पेड़ और पौधों को रोगो से बचाया जा सकता है | इससे फसल की पैदावार अच्छी होती है | इसमें गाय का गोबर और मूत्र, पल्स का आटा, ब्रॉउन शुगर इन सभी चीजों का मिश्रण तैयार करके खेती में प्रयोग किया जाता है |
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बीजामृत
इसका प्रयोग पौधे के बीज रोपण के समय किया जाता है, इसमें पौधों की जड़ों को कवक, मिट्टी में होने वाली बिमारियों से बचाया जाता है | बीजामृत बनाने में गाय का गोबर, गाय मूत्र, एंटी बैक्टीरिया तरल, नींबू और मिट्टी का प्रयोग किया जाता है |
आच्छादन मल्चिंग
मिट्टी की नमी को बचाने के लिए और उसकी प्रजनन क्षमता को बनाने के लिए मल्चिंग का प्रयोग किया जाता है, इसमें मिट्टी की सतह पर कई तरह मटेरियल लगाए जाते है, जिससे खेती में मिट्टी की गुणवत्ता में किसी भी प्रकार की कमी न आ सके |
व्हापासा
सुभाष पालेकर जी के अनुसार पौधे को बढ़ने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, पौधों का व्हापासा अथार्त भाप की सहायता से विकास हो सकता है, व्हापासा उस स्थिति को कहा जाता है, हवा अणु है और पानी के अणु मिट्टी में उपस्थित रहते है | इन दोनों अणुओं की सहायता से पौधें का विकास संभव है |
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सुभाष पालेकर
सुभाष पालेकर एक पूर्व कृषि वैज्ञानिक है, जिन्होंने भारतीय कृषि पर कई प्रकार का रिसर्च किया है | इन्होंने ही जीरों बजट खेती पर अध्ययन किया है, इनके द्वारा बतायी गयी विधि से कई राज्यों में खेती की जा रही है, यह एक सफल प्रयोग है |
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