जैविक खाद किसे कहते हैं

जैविक खाद की जानकारी (About Organic Compost) 

वर्तमान समय में पर्यावरण की स्थिति बड़ी ही दयनीय है| ग्लोबल वार्मिंग से नई-नई बीमारियों को जन्म ले रही है| इन बीमारियों को बढ़ावा देने में रासायनिक खादों का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसे में जैविक खादों का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। शुरुआत में वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने और अनाज की अधिक उपज के लिए उर्वरक खादों के उपयोग पर जोर देते थे, वही आज अनेक बीमारियों से बचने के लिए फसलों में जैविक खादों के प्रयोग पर बल दे रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार देश में पौष्टिक तत्वों की कुल खपत में रासायनिक खादों से उगाए गए खाद्य पदार्थ बाजारों में अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। जैविक खाद से न केवल उत्पादकता में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है, बल्कि पर्यावरण भी अनुकुल बना रहता है।

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जैविक खाद क्या है (What Is Organic Compost)

जैविक खेती कृषि की एक ऐसी पद्धति है, जिसमें पर्यावरण को स्वच्छ प्राकृतिक संतुलन को अनुकूल बनाते हुए भूमि, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाता है। जैविक खेती में रसायनों का उपयोग कम से कम व आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। जैविक खेती रसायनिक कृषि की अपेक्षा सस्ती, स्वावलम्बी एवं स्थाई है। इसमें मिट्टी को एक जीवित माध्यम माना गया है। भूमि का आहार जीवांश हैं। जीवाशं गोबर, पौधों व जीवों के अवशेष आदि को खाद के रूप में भूमि को प्राप्त होते हैं। जीवांश खादों के प्रयोग से पौधों के समस्त पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं। जैविक खाद से उगाई गयी फसलों पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बहुत ही होता है, जिससे हानिकारण रसायन, कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकता नहीं रह जाती है। जिसके कारण फसलों से प्राप्त खाद्य सामग्री, फल एवं सब्जी आदि हानिकारक रसायनों से पूर्ण रूप से मुक्त होते हैं। जीवांश खाद के प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट, पोषक-तत्वों से भरपूर एवं रसायनों से मुक्त होते हैं।

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जैविक खेती की आवश्यकता (Need Of Organic Compost) 

स्वतंत्रता के समय खाने के लिए अनाज विदेशों से आयात किया जाता था, खेती से उत्पादन काफी कम होता था, परन्तु जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होनें के कारण अनाज की कमी होने लगी| इसके पश्चात हरित क्रान्ति का दौर आया, इस दौर में 1966-67 से 1990-91 के बीच भारत में अन्न उत्पादन में एक बड़े स्तर पर वृद्धि हुई| अधिक अनाज उत्पादन के लिए कृषको नें अंधाधुंध उर्वरकों, कीटनाशकों और रसायनों का प्रयोग करनें लगे, जिसके कारण भूमि की विषाक्तता बढ़ गई| मिट्टी से अनेक उपयोगी जीवाणु नष्ट हो गए और उर्वरा शक्ति भी कम हो गई| आज संतुलित उर्वरकों की कमी के कारण उत्पादन स्थिर सा हो गया है, मिटटी की उर्वरा शक्ति में कमी होने लगी है, जिसके कारण मिटटी में पोषक तत्वों का असंतुलन हो गया हैं| मिटटी की घटती उर्वरकता के कारण उत्पादकता का स्तर बनाए रखने के लिए अधिक से अधिक जैविक खादों का प्रयोग आवश्यक हो गया है|

किसानों द्वारा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रकार की उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं| रसायनयुक्त खाद्य पदार्थों के प्रयोग से शारीरिक विकलांगता एवं कैंसर जैसी भयंकर बीमारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है| इस समस्या के निदान के लिए आधुनिक जैविक खेती अवधारणा एक उचित विकल्प के रूप में उभरकर सामने आई है|

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जैविक खाद बनाने की विधियां (Method Of Making Organic Compost) 

मृदा को स्वस्थ बनाए रखने तथा बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए, उत्पादन लागत कम करने हेतु व पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है, कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करके जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।  जैविक खादों में फार्म यार्ड खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नैडप की खाद इसके अलावा मूंगफली, केक, मछली की खाद, महुआ केक इत्यादि प्रमुख रूप से हैं ।

1.वर्मी कम्पोस्ट खाद (Vermi Compost)

वर्मी कम्पोस्ट खाद में केंचुओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । एक विशेष प्रकार के केंचुए की प्रजाति के द्वारा कार्बनिक / जीवांश पदार्थो को विघटित करके /  सड़ाकर यह खाद तैयार की जाती है । जिसे वर्मी कम्पोस्ट खाद कहते हैं ।

 वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि (How To Make Vermi Compost)

एक छायाकार और ऊंचे स्थान पर जमीन की सतह से थोड़ा ऊपर मिट्टी डालकर 2 मी.× 2 मी. ×1 मी. क्रमशः लंबाई, चौड़ाई और गहराई का आवश्यकतानुसार गड्ढा बना लें तथा गड्ढे में सबसे नीचे ईट या पत्थर की 11 सें.मी. परत बनाए, फिर 20 सें.मी. मौरंग या बालू की दूसरी सतह लगाइये । इसके ऊपर 15 सें.मी. मिट्टी की ऊंची तह लगाकर पानी का हलका छिड़काव करके मिट्टी को नम बनायें । इसके बाद सड़ा गोबर डालकर एक कि.ग्रा. प्रति गड्ढे की दर से केंचुए छोड़ दें फिर इसके ऊपर 5 से 10 सें.मी. घरेलू कचरा जैसे- फल व सब्जियों के छिलके, पुआव, भूसा, मक्का व जल कुंभी, पेड़ की पत्तियां आदि को बिछा दें । लगभग 20 दिन तक आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें । इसके बाद प्रति सप्ताह दो बार 5-10 सें.मी. सड़ने योग्य कूड़े कचरे की तह लगाते रहें, जब तक कि सारा गड्ढा भर न जायें । प्रत्येक दिन पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए । 5-7 सप्ताह बाद वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है । उसके बाद खाद निकाल कर छाया में ढेर लगाकर सुखा दें ।

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2.कम्पोस्ट खाद (Compost Manure)

फसलों के अवशेष, घास इत्यादि को जानवर से प्राप्त कचरा व गोबर को एक साथ एक निर्धारित गड्ढे में सड़ाकर बनाई गयी खाद को कम्पोस्ट खाद कहते है। इसके लिए 10 फिट × 5  फिट × 4 फिट लंबाई, चौड़ाई व गहराई का गड्ढा बनाकर उसकी चुनाई अंदर से ईट द्वारा कर दी जाती है । इसके बाद फसलों के अवशेष, सड़ा भूसा, पुआल व घास एवं पशुओं से प्राप्त गोबर को एक के बाद एक तल के रूप में लगाकर गड्ढा भर लिया जाता है । गड्ढा भर जाने के बाद मिट्टी से ढक दिया जाता है । इस प्रकार 6 माह में खाद सड़कर तैयार हो जाती है ।

3.हरी खाद (Green Compost)

हरी खाद की अनेक प्रकार की फसलों की उत्पादन क्षमता जलवायु, फसल वृद्धि तथा कृषि क्रियाओं पर निर्भर करती है । इसमें ढैंचा, सनई, उड़द, मूंग इत्यादि के पौधों को हरी अवस्था में खेत में पलटकर सड़ा दिया जाता है| जिससे मृदा को जैविक खाद प्राप्त होती है । खरीफ मौसम शुरू होने पर खेत में पलेवा करके ढैंचा व सनई की बुआई करनी चाहिए । ध्यान रहे बुआई करते समय यदि खेत की उर्वरा शक्ति कम हो तो रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए तथा फसल जमाव के बाद कम नमी की अवस्था में सिंचाई करते रहना चाहिए । बुआई के लिए ढैंचा 60-70 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा सनई 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के अवस्था की हो जाये उस समय पाटा लगाकर फसल को गिराकर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए । यदि ट्रैक्टर से पलटाई करनी है तो हैरो से जुताई करके सनई, ढैंचे को सड़ाकर मिला चाहिए ।

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4.फर्म यार्ड खाद या घूरे की खाद (Firm Yard Compost) 

अधिकांश किसान अपने घरो में गाय, भैंस, बकरी आदि जानवर पालते है| इन्ही पालतू जानवरों से प्राप्त गोबर, मल-मूत्र से तैयार खाद को फार्म यार्ड या घूरे की खाद कहते हैं । कृषकों द्वारा जानवरों से प्राप्त गोबर व मल-मूत्र का ठीक ढंग से न सड़ने के कारण खाद काफी खराब होकर सूख जाती है, जिससे तत्वों की मात्रा काफी कम हो जाती है । ऐसी स्थिति में पूर्व में निर्धारित तथा गहरे गड्ढे से प्राप्त गोबर कचरा और मूत्र इत्यादि को एक तह के रूप में गड्ढे में डालना चाहिए । जब एक तह लग जाये तो उसके बाद मिट्टी की हल्की परत से ढक देना चाहिए । इसके बाद दूसरी तह गोबर की डालनी चाहिए । इस प्रकार गड्ढा भर जाने पर हल्की मिट्टी से ढक देना चाहिए । गड्ढे में कम नमी के अवस्था में पानी का छिड़काव अवश्य करना चाहिए, जिससे गोबर सड़ने में आसानी रहे । इस प्रकार यह खाद तैयार हो जाने के बाद फसल बुआई के पूर्व खेत तैयार करते समय फसल के अनुसार मिट्टी में मिला देना चाहिए ।

5.खली की खाद (Oil Cake Compost)

तिल, मूंगफली, महुआ, नीम इत्यादि से तेल निकालने के बचे हुए अवशेष को खली कहते हैं । इसका प्रयोग फसलों में करने से काफी मात्रा में तत्वों के प्राप्त होने के साथ ही साथ मृदा में पनपने वाले हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करते हैं । फसल की आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग करना चाहिए ।

जैविक व हरी खादों में औसत पोषक तत्व प्रतिशत (Average Nutrient Percentage in Organic and Green Compost)

जैविक खाद

 नाइट्रोजन  

पोषक तत्व (प्रतिशत)

पोटाश

फार्मयार्ड खाद

0.80

0.41               

0.74

कम्पोस्ट खाद

1.24                                

1.92

1.07

वर्मी कम्पोस्ट

1.60

2.20

0.67

धान पुआल की खाद

1.59

1.34

1.37

गेहूं भूसा की खाद

2.90

2.05

0.90

जलकुंभी

2.0

1.0

2.30

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यहाँ पर हमनें जैविक खाद (Organic Compost) के विषय में बताया| यदि इस जानकारी से सम्बन्धित आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न आ रहा है, अथवा इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो कमेंट बाक्स के माध्यम से पूँछ सकते है,  हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार कर रहे है |

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