विधेयक (बिल) क्या होता है

विधेयक (बिल) से सम्बंधित जानकारी (Information About Bill)

बिल को हिंदी में विधेयक कहते हैं। जिसे संसद में कानून बनाने के लिए प्रस्तावित किया जाता है। विधेयक अर्थात बिल को किसी खास उद्देश्य से संसद में लाया जाता है। देश के हित में सरकार यदि कोई नया कानून बनाना चाहती है, या किसी पुराने कानून में आवश्यकताओं के अनुसार उसमें संशोधन करनें के लिए बिल बनाया जाता है| जैसे कि आरटीआई संशोधन बिल या तीन तलाक बिल| बिल बनाने के लिए सरकार कई जानकारों की सहायता लेती है| जिसमें कई आईएएस अधिकारी, मंत्री और कभी-कभी विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसर शामिल होते हैं| बिल को काफी विचार- विमर्श के साथ सोच-समझकर बनाया जाता है, जिस पर आगे की कार्रवाई की जाती है| विधेयक (बिल) क्या होता है, विधेयक के प्रकार और विधेयक कैसे पास होता है? इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहे है|

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विधेयक (बिल) क्या होता है (Bill Kya Hota Hai)

सरकार द्वारा किसी नये कानून का निर्माण करना या पुराने कानून में संशोधन किया जाना होता है, तो उसके प्राथमिक चरण को अधिनियम कहते हैं। इस प्राथमिक चरण में नये कानून को बनाने के मुख्य प्रस्ताव, सुझाव या पुराने कानून में बदलाव के प्रस्ताव या सुझाव होते हैं। विधेयक को प्रस्ताव के रूप में भी समझा जा सकता है, जिसे कानूनी अमला पहनाने के लिए कई रास्तों से गुजरना होता है।

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विधेयक के प्रकार (Types Of Bill)

जब कोई प्रस्ताव संसद में कानून बनाने के लिए रखा जाता है, तो उसे विधेयक कहते हैं| भारत में विधेयकों की दो श्रेणियाँ होती हैं, सार्वजनिक तथा निजी यह गैर सरकारी विधेयक। इसके अतिरिक्त यदि कोई विधेयक सरकार द्वारा प्रेषित होता है, तो उसे सरकारी विधेयक कहते हैं। सरकारी विधेयक दो प्रकार के होते हैं। सामान्य सार्वजनिक विधेयक तथा धन विधेयक। जब संसद का कोई साधारण सदस्य सार्वजनिक विधेयक प्रस्तुत करता है, तब इसे प्राइवेट सदस्य का सार्वजनिक विधेयक कहते हैं। सार्वजनिक तथा असार्वजनिक विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया में अंतर होता है।

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धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक साधारण विधेयक कहे जाते हैं| भारतीय संविधान का अनुच्छेद 110 ‘धन विधेयक’ की परिभाषा से संबंधित है। कोई विधेयक धन विधेयक कहलाता है, यदि उसमे “करों के अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन से संबंधित प्रावधान” होते हैं| एक साधारण विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी पेश किया जा सकता है, जबकि धन विधेयक सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।

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सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी विधेयक क्या है (Government And Non-Government Bill)

भारतीय संसद के दोनों सदनों में विधायी प्रक्रिया समान है| प्रत्येक विधेयक को संसद के नों सदनों में पास करने की प्रक्रिया भी समान है| जब किसी विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है, और उस पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर कर दिया जाता है तब वह विधेयक एक अधिनियम या कानून बनता है|सरकारी विधेयक को संसद में केवल एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जबकि गैर-सरकारी विधेयक को संसद के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है|गैर-सरकारी विधेयक एक ऐसे कानून के लिए प्रस्तावित किया जाता है, जो किसी खास व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या निगम के लिए लागू होता है|

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सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी विधेयक में अंतर (Difference Of Government And Non-Government Bill)

सरकारी विधेयक गैर-सरकारी विधेयक
1. इसे संसद में मंत्री द्वारा पेश किया जाता है| 1. इसे संसद में मंत्री के अलावा किसी भी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है|
2. यह सरकार (सत्तारूढ़ दल) की नीतियों को प्रदर्शित करता है| 2. यह सार्वजनिक विषयों पर विपक्षी दलों के मंतव्य (विचार) को प्रदर्शित करता है|
3. संसद द्वारा इसके पारित होने की पूरी उम्मीद होती है| 3. इसके संसद में पारित होने की कम उम्मीद होती है|
4. संसद द्वारा सरकारी विधेयक अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है| 4. इसके अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
5. सरकारी विधेयक को संसद में पेश होने के लिए सात दिनों का नोटिस होना चाहिए| 5. गैर-सरकारी विधेयक को संसद में पेश करने के लिए एक महीने का नोटिस होना चाहिए|
6. इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है| 6. इसका निर्माण संबंधित सदस्य की जिम्मेदारी होती है|

साधारण विधेयक एवं धन विधेयक (Ordinary Bill and Money Bill)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 ‘धन विधेयक’ की परिभाषा से संबंधित है। कोई विधेयक धन विधेयक कहलाता है अगर उसमे “करों के अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन से संबंधित प्रावधान” होते हैं| एक साधारण विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी पेश किया जा सकता है, जबकि धन विधेयक को पहले सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।

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साधारण विधेयक एवं धन विधेयक में अंतर (Difference Between Ordinary Bill and Money Bill) 

क्र.सं. धन विधेयक साधारण विधेयक
1. इसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है|

इसे संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है|

2. इसे लोकसभा में केवल किसी मंत्री के द्वारा ही पेश किया जा सकता है|

इसे किसी मंत्री के अलावा अन्य सदस्यों के द्वारा भी पेश किया जा सकता है|

3.

इसे राष्ट्रपति की अनुशंसा प्राप्त होने पर ही पेश किया जा सकता है|

इसे पेश करने के लिए राष्ट्रपति की अनुशंसा की आवश्यकता नहीं होती है|

4.

इस विधेयक को राज्यसभा द्वारा संशोधित या अस्वीकार नहीं किया जा सकता है| वह कुछ सुझाव या बगैर सुझाव के इसे लोकसभा को भेजता है जिन सुझावों को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति लोकसभा के पास है|

इसे राज्यसभा द्वारा संशोधित या अस्वीकार किया जा सकता है|

5.

इसे राज्यसभा अधिकतम 14 दिनों तक अपने पास रोककर रख सकता है|

इसे राज्यसभा अधिकतम 6 महीने तक अपने पास रोककर रख सकता है|

6.

इस विधेयक को राज्यसभा में भेजने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक है|

इस विधेयक को राज्यसभा में भेजने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक नहीं है|

7.

इस विधेयक को केवल लोकसभा से पारित होने के बावजूद भी राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जा सकता है| ऐसे विधेयक के लिए संसद के दोनों सदनों की बैठक की आवश्यकता नहीं है|

इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए तभी भेजा जा सकता है जब यह दोनों सदनों में पास हो जाय|  यदि संसद के दोनों सदनों में इस विधेयक को लेकर गतिरोध हो तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाया जा सकता है|

8.

यदि यह विधेयक लोकसभा में पास नहीं हो पाता है तो ऐसी स्थिति में पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है|

अगर इस विधेयक को किसी मंत्री द्वारा पेश किया गया हो और यह लोकसभा में पास नहीं हो पाता है तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है|

9.

इस विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है लेकिन पुनर्विचार के लिए नहीं भेजा जा सकता है क्योंकि इस विधेयक को पेश करने से पहले ही  राष्ट्रपति की अनुमति ली जाती है|

इस विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है एवं पुनर्विचार के लिए भी  भेजा जा सकता है|

विधेयक कैसे पास होता है(How Does The Bill Pass)

विधेयक अर्थात बिल बननें के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जाता है| सरकार के सभी मंत्री एक मीटिंग करते हैं, इसमें दूसरी पार्टी के के सांसद नहीं होते हैं| इस मीटिंग में अब तैयार हो चुके बिल की कॉपी सभी मंत्रियों को दी जाती है| केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सभी व्यक्ति इस पर बहस करते हैं, कि बिल में क्या ख़ामियां हैं? या और क्या चीज़-बात को इसमें जोड़ना चाहिए? और बहस के बाद कैबिनेट में इस बिल पर वोटिंग होती है, इसके बाद बिल तैयार हो जाता है|

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अब यह बिल संसद, लोकसभा में पेश किया जाता है| लोकसभा में आम वोटरों द्वारा चुनकर भेजे गए सांसद, जो अलग-अलग पार्टियों से होते हैं, वह इस बिल पर बहस करते हैं| बहस में बिल की खूबियों-खामियों पर बात होती है, परन्तु मामला गंभीर होता है| कैबिनेट में कई मंत्री नहीं बोलते हैं, क्योंकि उनकी सरकार होती है और वह सरकार का विरोध नहीं कर सकते हैं, लेकिन लोकसभा में ऐसा नहीं होता है| कई जगहों और अलग-अलग तरह की समझदारियों के सांसद होते हैं| कई बार बिल को राष्ट्रहित में मानकर अधिक बहस नहीं होती है, परन्तु कुछ बिलों पर जमकर बहस होती है, अर्थात काफी विरोध होने लगता है|

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विपक्ष द्वारा अलग-अलग तरह के आरोप भी लगाये जाते है, जैसे, ये बिल नागरिकताविरोधी है, या ये बिल संविधान की मूलभावना के खिलाफ है, या इस बिल में ऐसे प्रावधान हैं, जिससे सरकार में मौजूद पार्टी को लाभ पहुंच सकता है या बिल जनता के विशेष समुदाय की भावनाओं के खिलाफ है|  इन सब बहसों के जवाब में सरकार बिल को अपने तरीको से बचाने की कोशिश करती है, तर्क देती है, और इस सब हंगामे के बाद बिल पर वोटिंग होती है| वोटिंग में जिसके पास लोकसभा में बहुमत जिसके पास होता है, बिल को पास या फेल करने में उसकी भूमिका निर्णायक होती है|

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विधेयक लोकसभा में पास होनें के बाद (After Bill Passed InLok Sabha)

बिल लोकसभा में पास होनें के बाद अब राज्यसभा में जाएगा|  यहां पर बिल के बारें में यह बताना ज़रूरी है, कि किसी बिल के एक कानून बनने के पहले का यह ज़रूरी पड़ाव है| राज्यसभा में कई राज्यों से चुनकर आए राज्यसभा सांसद होते हैं| यहां पर लोकसभा से पास होकर आए बिल पर फिर से वोटिंग होती है| यदि बहुमत सिद्ध हो गया तो बिल पास हो जाता है|  बिल की वोटिंग पर बहुमत प्राप्त करनें के लिए सरकारों को बहुत मेहनत करनी पडती है| बिल पास करवाने के लिए सरकार विपक्षी सांसदों को मनाती है| कई बार ऐसा भी होता है, कि बिल के पक्ष में वोट करने वाले विपक्षी राज्यसभा सांसद कई शर्तें रख देते हैं, शर्तें माननें के बाद ही वह बिल पर वोटिंग करते हैं, और बिल पास हो जाता है|

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विधेयक कानून कैसे बनता है (How Does A Bill Become A Law)

बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास होनें के बाद बिल राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है| राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों से पास बिल पर मुहर लगा देते हैं, और बिल कानून बन जाता है| राष्ट्रपति की मुहर लगनें के बाद इस कानून को बिल नहीं कहते हैं, बल्कि इसे ‘एक्ट’ कहते हैं|

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अब तक पारित गैर सरकारी विधेयकों की सूची 

क्र०सं० विधेयक
1. मुस्लिम वक्फ विधेयक 1952 जो कि 54 में पारित हुआ।
2. भारतीय पंजीकरण संशोधन विधेयक 1945 जोकि 56 में पारित हुआ
3. संसदीय कार्यवाहियां प्रकाशन सुरक्षा विधेयक 1956 जोकि 56 में ही पारित हुआ।
4. आपराधिक प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक 1953 जोकि 1956 में पारित हुआ।
5. महिला एवं बाल संहिता लाइसेंस विधेयक 1954 जो 1956 में पारित हुआ।
6. प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल तथा अवशेष राष्ट्रीय महत्व का घोषित विधेयक 1954 जो 1956 में पारित हुआ।
7. हिंदू विवाह संशोधन विधेयक 1956
8. आपराधिक प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक 1956 जोकि 1960 में पारित हुआ।
9. अनाथालय और अन्य धर्मालय देखरेख और नियंत्रण विधेयक 1960
10. मैरीन बीमा विधेयक 1959  जो 1963 में पारित हुआ।
11. सांसद वेतन और भत्ते संशोधन विधेयक 1964, जो उसी वर्ष पारित हुआ।
12. हिंदू विवाह संशोधन विधेयक 1963 जोकि 1964 में पारित हुआ।
13. भारतीय दंड संहिता संशोधन 1963 जोकि 1969 में पारित हुआ।
14. उच्चतम न्यायालय आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार विस्तार विधेयक 1968 जोकि 1970 में पारित हुआ।

यहाँ पर हमनें विधेयक (बिल) के विषय में बताया| यदि इस जानकारी से सम्बन्धित आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न आ रहा है, अथवा इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो कमेंट बाक्स के माध्यम से पूँछ सकते है,  हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार कर रहे है|

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