राज्यसभा के कार्य,शक्ति और अधिकार

राज्यसभा के कार्य अधिकार 

राज्य सभा को काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है | राज्य सभा भारतीय लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है, जबकि   लोकसभा निचली प्रतिनिधि सभा है । राज्यसभा में 245 सदस्य होते हैं, जिनमे 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं, इन्हें ‘नामित सदस्य’ कहा जाता है,  अन्य सदस्यों का चुनाव होता है । राज्यसभा में सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं, जिनमे एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक 2  वर्ष में सेवा-निवृत होते हैं । राज्यसभा के कार्य, शक्तियां और अधिकार से सम्बंधित जानकारी आपको इस पेज पर दे रहे है |

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राज्यसभा के कार्य शक्तियां और अधिकार

राज्यसभा के अधिकारों को मुख्य पाँच भागों में बाँटा गया है –

1.विधान-सम्बन्धी अधिकार

धन विधेयक को छोड़कर अन्य कोई भी विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन में पहले उपस्थित किया जा सकता है. कोई विधेयक तभी कानून बन सकता है जब वह संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाए. यदि दोनों सदनों में मतभेद हो, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है, संयुक्त बैठक में दोनों सदनों के सदस्यों के बहुमत से जो भी निर्णय होगा  , वह अंतिम निर्णय समझा जायेगा | राज्यसभा किसी भी सामान्य विधेयक को पारित करने में अधिक-से-अधिक 6 महीनों तक विलम्ब कर सकती है |

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2.वित्त-सम्बन्धी अधिकार

वित्त-सम्बन्धी विषयों में राज्यसभा बिल्कुल शक्तिहीन है | धन विधेयक केवल लोक सभा में उपस्थित किया जा सकता है | लोक सभा द्वारा स्वीकृत होने पर वह राज्यसभा में भेज दिया जाता है, राज्य सभा उस पर 14 दिनों के अन्दर अपना मत प्रकट करेगी | यदि वह ऐसा नहीं करे, तो लोक सभा द्वारा पारित विधेयक ही विधि बन जाता है,  यदि राज्यसभा कुछ सिफारिशें करें, तो उन्हें मानना या न मानना लोक सभा की इच्छा पर निर्भर है |

3.संविधान में संशोधन का अधिकार

संविधान में संशोधन करनें के सम्बन्ध में दोनों सदनों को सामान अधिकार प्राप्त है | संशोधन का प्रस्ताव पास होने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों का स्पष्ट बहुमत तथा उपस्थित और मत देनेवाले सदस्यों का 2/3 बहुमत होना आवश्यक है, चूँकि दोनों सदनों में मतभेद होने पर यह संयुक्त अधिवेशन (Joint Session) द्वारा निर्णित होगा, इसलिए इस क्षेत्र में राज्य सभा का अधिकार नगण्य है |

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4.प्रशासकीय अधिकार

जहाँ तक शासन-सम्बन्धी अधिकारों का सम्बन्ध है, हम देखते हैं कि मंत्रिमंडल, जो देश का वास्तविक शासक है, लोक सभा के प्रति उत्तरदाई है. हाँ, राज्यसभा के सदस्य भी मंत्री नियुक्त हो सकते हैं, फिर भी, राज्यसभा प्रश्नों, प्रस्तावों और वाद-विवादों द्वारा मंत्रिमंडल के कार्यों पर कुछ अंश में नियंत्रण रख सकती है |

5.विविध अधिकार

राज्यसभा को कुछ और भी अधिकार प्राप्त हैं | राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग लगाने का अधिकार लोक सभा के सामान ही इसे प्राप्त है |  उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों के किसी भी न्यायाधीश को हटाने का अधिकार लोक सभा के साथ इस सभा को भी है | महाभियोग का प्रस्ताव दोनों सदनों में किसी एक के सामने रखा जा सकता है, यह सभा 2/3 बहुमत से एक पस्ताव पास कर राज्य सूची के किसी विषय पर विधायन का अधिकार संसद को दे सकती है | आपातकालीन समय में राष्ट्रपति द्वारा जो भी होंगी उनका अनुमोदन लोक सभा के साथ-ही-साथ राज्यसभा द्वारा भी होना आवश्यक है | राष्ट्रपति के निर्वाचन में इस सभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं | उपराष्ट्रपति का निर्वाचन  तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में ही होता है |

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