मकर संक्रांति से सम्बंधित जानकारी (About Makar Sankranti)
मकर संक्रांति हिंदू संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है, जो जनवरी माह की लगभग 14 या 15 तारीख को मनाया जाता है| इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तपर्ण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है, कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है| मकर संक्रांति एक पर्व है जिसे अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता है, और यह नेपाल में भी धूमधाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है, जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में यह केवल ‘संक्रांति’ के रूप में जाना जाता है। इस दिन गंगा नदी के किनारे अलग-अलग राज्यों में माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है, और कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।
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मकर संक्रांति क्या है (Makar Sankranti Kya Hai)
ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे संक्रांति कहा जाता है। ‘मकर’ शब्द मकर राशि को इंगित करता है, और ‘संक्रांति’ का अर्थ है संक्रमण या प्रवेश। इसलिए, इस समय को ‘मकर संक्रांति’ या उत्तरायण भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान, और सूर्यदेव की उपासना का विशेष महत्व है।
जब सूर्यदेव अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते है, तब उसे ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। जब सूर्य की गति उत्तरायण होती है, तो कहा जाता है कि उस समय से सूर्य की किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है। इस वर्ष इसे 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मान्यता है, कि इस दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते है। इसलिए इस अवसर पर गंगा स्नान व दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस त्यौहार का निर्धारण सूर्य की यह पर्व गति के अनुसार और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण ‘मकर संक्रांति’ और ‘देवदान पर्व’ के रूप में मनाया जाता है।
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मकर संक्रांति क्यों मनाते है (Why Celebrate Makar Sankranti)
मकर संक्रांति का पर्व पौष मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण (उत्तर की और चलना) हो जाता है। शास्त्रों में उत्तारायण की अवधि को देवी-देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के रूप में माना गया है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, जप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन घी और कंबल के दान का भी विशेष महत्व है। इस त्योहार का संबंध केवल धर्मिक ही नहीं बल्कि इसका संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। इस दिन से दिन एंव रात दोनों बराबर होते है।
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मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व (Scientific Significance Of Makar Sankranti)
ऐसा कहा जाता है, कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का योग बनता है, लेकिन इसके अलावा भी कई सारे बदलाव आते हैं। मकर संक्रांति केवल धर्म से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि वैज्ञानिक और कृषि जैसे अन्य पहलुओं से भी जुड़ा है। सूर्य को सभी ग्रहों का देवता माना जाता है। सूर्य सभी 12 राशियों को प्रभावित करते हैं, लेकिन कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश लाभदायक माना जाता है। प्राचीनकाल से ही मकर संक्रांति के दिन को बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन से सभी शुभ कार्य प्रारंभ होते हैं।
मकर संक्रांति के वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो इस अवधि में सभी नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इस क्रिया को अनेक प्रकार की बीमारियों को दूर करने में सहायक माना जाता है। इस दिन नदियों में स्नान आदि करने के लिए कहा जाता है, ताकि आप रोगों से दूर रहे अथवा शारीरिक रूप से आपकी दुर्बलता समाप्त हो जाये।
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मकर संक्रांति से वातावरण में बदलाव (Change In Environment)
मकर संक्रांति के बाद नदियों में वाष्पन प्रक्रिया शुरू होती है, जिससे शरीर की कई बीमारियाँ दूर होती हैं। इस मौसम में तिल और गुड़ खाना शरीर को गर्म रखता है और वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।
खिचड़ी खानें से लाभ (Benefit From Polenta)
मकर संक्रांति के दिन प्रसाद के रूप में खिचड़ी खायी जाती है| खिचड़ी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होती है। खिचड़ी का सेवन करनें से पाचन क्रिया सुचारु रूप से संचालित होनें लगती है। इसके साथ ही यदि खिचड़ी मटर और अदरक मिलाकर बनाएं तो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही बैक्टिरिया से भी लड़ने में मदद करती है।
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आर्युवेद में मकर संक्रांति का महत्व (Importance Of Makar Sankranti In Aryuveda)
आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाओं से लोगो को अनेक प्रकार की बीमारिया हो जाती है, इसलिए प्रसाद के रूप में खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने का प्रचलन है। तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने से शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी बढ़ती है। तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 36 ग्राम तिल के बीज से लगभग 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।प्राप्त होती है। यह गठिया रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है|
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