सेलेक्ट कमेटी और स्टैंडिंग कमेटी की जानकारी (Select Committee And Standing Committee)
भारतीय संसद में संसद के कई कार्य संसद की समितियों के द्वारा किया जाता है | इन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है | संसदीय समिति का अर्थ वह समिति है, जिसकी नियुक्ति संसद के द्वारा की जाती है | यह सभा द्वारा निर्वाचित की जाती है अथवा इस समिति को अध्यक्ष द्वारा चुना जाता है, और यह अध्यक्ष के निर्देश के अनुसार कार्य करती है और अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है | समिति का सचिवालय लोक सभा सचिवालय द्वारा प्रदान किया जाता है | इस पेज पर सेलेक्ट कमेटी (स्थायी समिति) और स्टैंडिंग कमेटी (तदर्थ समिति) क्या होती है, इनमे क्या अंतर है, के विषय बताया जा रहा है |
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सेलेक्ट कमिटी (Select Committee)
संसद द्वारा बनायीं गयी समिति जैसे लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, विशेषाधिकार समिति और सरकारी आश्वासन समिति इत्यादि समितियों को स्थायी समिति कहा जाता है | इन सभी का कार्य निर्धारित रहता है | कुल 24 समिति होती है, इनका कार्य विभागों के आधार पर विभाजित रहता है | इसमें लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य सम्मिलित किये जाते है | प्रत्येक समिति में सदस्यों की संख्या अलग- अलग निर्धारित की जाती है | राज्यसभा के नियम संख्या 125 के अनुसार किसी भी सदस्य के द्वारा बिल को स्थायी समिति के पास भेजने का प्रस्ताव लाया जा सकता है | यदि प्रस्ताव पास हो जाता है तो उस बिल को संबंधित स्थायी समिति के पास भेज दिया जाता है |
वर्तमान समय में संसद के पास कई विभिन्न और जटिल प्रकार के कार्य होते है इनकी मात्रा अत्यधिक होती है | इन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए संसद के पास बहुत ही सिमित समय होता है | इसमें वह सभी विधायी तथा अन्य मामलों पर गहराई के साथ विचार नहीं कर पाती है, इसलिए ऐसे मामलों को स्थायी समिति के पास भेजा जाता है |
प्रस्ताव पास होने के बाद सदन द्वारा भेजे गए विधेयकों पर समितियों के द्वारा गंभीरता से विचार किया जाता है | यह समितियां अपने सुझाव दे सकती है, इनके द्वारा विधेयक से संबंधित संगठनों व विशेषज्ञों की राय ली जा सकती है | इन समितियों के द्वारा विधेयक पर विचार के बाद अपने सुझाव और संशोधन को सदन को सौंप दिया जाता है | अगर समिति का कोई सदस्य किसी प्रकार की असहमति दर्ज कराता है तो उसकी रिपोर्ट सदन में भेज दी जाती है |
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स्टैंडिंग कमिटी (Standing Committee)
स्टैंडिंग कमिटी अथवा तदर्थ समिति विशेष कार्यों के लिए गठित की जाती हैं, इस प्रकार की समितियों का अस्तित्व तभी तक रहता है, जब तक वह अपना कार्य पूरा करके रिपोर्ट सदन को न सौंप दें | इसके बाद उन समितियों को समाप्त कर दिया जाता है | तदर्थ समिति दो प्रकार की होती हैं, प्रवर समिति और संयुक्त समिति इन दोनों समितियों का कार्य सदन में पेश किए गए विधेयकों पर विचार करना होता है | सदन में पेश किये गए सभी बिल इन समितियों के पास नहीं भेजें जाते है |
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स्थायी समितियां (Select Committees)
स्थायी समितियों की संख्या 24 होती है, इनके क्षेत्राधिकार में भारत सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग आते हैं | प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं | इसमें 21 लोक सभा के तथा 10 राज्य सभा के होते है |
- वाणिज्य संबंधी समिति
- गृह कार्य संबंधी समिति
- मानव संसाधन विकास संबंधी समिति
- उद्योग संबंधी समिति
- विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी समिति
- परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी समिति
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी समिति
- कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी समिति
- कृषि संबंधी समिति
- सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी समिति
- रक्षा संबंधी समिति
- ऊर्जा संबंधी समिति
- विदेशी मामलों संबंधी समिति
- वित्त संबंधी समिति
- खाद्य, नागरिक पूर्ति और सार्वजनिक वितरण संबंधी समिति
- श्रम संबंधी समिति
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस संबंधी समिति
- रेल संबंधी समिति
- शहरी विकास संबंधी समिति
- जल संसाधन संबंधी समिति
- रसायन और उर्वरक संबंधी समिति
- ग्रामीण विकास संबंधी समिति
- कोयला और इस्पात संबंधी समिति
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी समिति
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वर्ष 2011 में लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा गया था | यह विधेयक राज्यसभा में पारित होने से पहले इसे प्रवर समिति के पास भेजा गया था | इस समिति ने इस पर अपनी रिपोर्ट एक वर्ष के बाद सदन में पेश की थी | इसको नवंबर 2012 में सौंपा गया था | इसमें समिति के द्वारा पंद्रह संशोधन करने के सुझाव दिए गए थे | इन सभी संसोधन को सदन के द्वारा स्वीकार्य किया गया था | संसद को अपने कार्य पूरे करने के लिए समितियों का सहयोग लेना पड़ता जिससे कार्य पूरा किया जा सके | समितियां सरकारी कामकाज पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए आवश्यक होती हैं |
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सेलेक्ट कमेटी (स्थायी समिति) और स्टैंडिंग कमेटी (तदर्थ समिति) में अंतर
तदर्थ समितियों का गठन किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है और इनका अस्तित्व तभी तक रहता है, जब तक कि वह अपना कार्य पूरा न कर ले | स्थायी समिति को दिए गए कार्य के बाद भी इनका अस्तित्व बना रहता है | लोकतंत्र निर्वाचित संस्थाओं के संचालन से ही विधि का निर्माण होता है | यह समितियां अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों को संपन्न करते हुए भारत के लोकतंत्र में अपनी केंद्रीय भूमिका का निर्वहन करती है | प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल को हर समय प्रत्यक्ष रूप में निर्वाचित लोकसभा के बहुमत का समर्थन अपेक्षित रहता है | इसके द्वारा लोकसभा और राज्य सभा में राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर की जाने वाले प्रस्तावों और अन्य जैसी अनेक प्रक्रियाओ के द्वारा संपन्न सरकारी कार्यों की समीक्षा की जाती है, जिससे सही विधेयक पास होकर अधिनियम बन सके |
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महत्वपूर्ण विधेयकों के लिए प्रवर समितियों का गठन समय-समय पर किया जाता है| इन समितियों की बैठकों में अन्य मामलों और बजटीय मामलों की जाँच नहीं की जाती है | यह समितियां कुछ मंत्रालयों पर ही केंद्रित रहती है और यही कारण है कि सदस्यों को संबंधित क्षेत्र का ज्ञान बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है | इनके सदस्य अपने क्षेत्र में अधिक से अधिक ज्ञान एकत्रित करने का प्रयास करते है | जिस भविष्य में होने वाली समस्याओं को पहले ही हल करने का प्रयास किया जा सके | यह समितियां विषयों के साथ-साथ अनुदान-माँगों की जाँच भी करती हैं | इसके बाद केंद्र सरकार के द्वारा सिफ़ारिशों के कार्यान्वयन की सूचना भी समितियों को प्रदान की जाती है |
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