उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश को हटाने की प्रक्रिया
भारतीय संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश को अपने पद से हटाने के लिए संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है, इस प्रक्रिया को संविधान की धारा 124 (4) में विस्तार से बताया गया है, महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा के 100 सदस्य या राज्यसभा के 50 सदस्य द्वारा लाया जाना अनिवार्य है , यह प्रस्ताव जिस सदन में लाया जाता है, उसके अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद एक जाँच समिति का गठन होता है, वह समिति दोषी पाए जाने पर कार्यवाही आगे बढ़ाने की स्वीकृति देती है, उसके बाद उस प्रस्ताव को पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत होना अनिवार्य है, उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश को हटाने की क्या प्रक्रिया है ?, इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहें है |
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उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियों और प्रक्रिया आदि का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 तक किया गया है, राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति की जाती है, सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायधीशों की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, सर्वोच्च न्यायालय में अन्य न्यायधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायधीश की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है |
संविधान में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने की बेहद जटिल प्रक्रिया है. इन अदालतों के न्यायाधीशों को सिर्फ साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ही हटाया जा सकता है, संविधान के अनुच्छेद 124 (4) और न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 और उससे संबंधित नियमावली में इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया की विस्तार से बताया गया है |
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संविधान के अनुसार
संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार, ‘उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर उसे हटाए जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन को उसी सत्र में राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करना अनिवार्य है |
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प्रस्ताव के लिए समर्थन
उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को अपने पद से हटाने की प्रक्रिया आरम्भ करने के लिए प्रस्ताव लोकसभा के न्यूनतम 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों द्वारा पेश करना चाहिए, यदि प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है |
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जाँच समिति
इसके लिए एक जांच समिति का गठन किया जाता है, इस जांच समिति में मुख्य रूप से तीन सदस्य होते हैं, इसमें उच्चतम न्यायालय का एक न्यायाधीश, उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रसिद्ध विधिवेत्ता इस समिति के सदस्य होते हैं, यह समिति उस न्यायाधीश पर आरोप तय करती है और उस न्यायाधीश से लिखित रूप में उत्तर देने का आदेश करती है, यदि जांच समिति उस न्यायाधीश को दोषी पाती है, तो वह प्रस्ताव को आगे बढ़ाने का विचार करती है, और यदि उस जाँच समिति द्वारा न्यायाधीश को दोषी नहीं पाया जाता है, तो आगे कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है |
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प्रस्ताव के लिए बहुमत
प्रस्ताव को पास करने के लिए उस सदन में चर्चा होती है, चर्चा के उपरांत उस प्रस्ताव पर मतदान होता है, उस प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत का तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत का समर्थन प्राप्त हो जाता है, तो उस प्रस्ताव को पारित मान लिया जाता है |
यह प्रक्रिया दोबारा से दूसरे सदन में की जाती है, उसके पश्चात राष्ट्रपति को उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए भेज दिया जाता है, राष्ट्रपति द्वारा यदि हस्ताक्षर कर दिया जाता है, तो इस प्रक्रिया को सम्पूर्ण माना जाता है और न्यायाधीश को अपने पद से हटना पड़ता है |
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