अटल बिहारी वाजपेयी की कविता संग्रह

अटल बिहारी वाजपेयी की कविताए 

अटल बिहारी वाजपेयी एक महान कवि और राजनेता के रूप में जाने जाते है, जिन्होंने देश के सम्मान में और विकास में अत्यधिक वृद्धि की है, उनको भारत की सेवा के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया | अटल जी कविताएं देश प्रेम को दर्शाती है, जिनके माध्यम से उन्होंने देश के युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास किया है | इन कविताओं के माध्यम से वह देश के युवा शक्ति को निर्भीक होकर देश सेवा करने की प्रेरणा देते है, आज हम आपको इस पेज पर अटल बिहारी वाजपेयी की कविता संग्रह के बारे में बता रहे है

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1.कदम मिलाकर चलना होगा

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बाधाएँ आती हैं आएँ,

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

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पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा |

क़दम मिलाकर चलना होगा |

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा |

क़दम मिलाकर चलना होगा |

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा |

क़दम मिलाकर चलना होगा |

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,

पावस बनकर ढ़लना होगा |

क़दम मिलाकर चलना होगा |

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,

प्रखर प्यार से वंचित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुबन,

परहित अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,

जलना होगा, गलना होगा |

क़दम मिलाकर चलना होगा |

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2.दो अनुभूतियां

पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं |

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं |

गीत नहीं गाता हूं |

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर,

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं |

गीत नहीं गाता हूं |

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद,

मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं |

गीत नहीं गाता हूं |

दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं |

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर,

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर,

झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात,

प्राची में अरुणिम की रेख देख पता हूं |

गीत नया गाता हूं |

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,

अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी,

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं |

गीत नया गाता हूं |

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3.दूध में दरार पड़ गई

खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया |

बंट गये शहीद, गीत कट गए,

कलेजे में कटार दड़ गई |

दूध में दरार पड़ गई |

खेतों में बारूदी गंध,

टूट गये नानक के छंद,

सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है |

वसंत से बहार झड़ गई |

दूध में दरार पड़ गई |

अपनी ही छाया से बैर,

गले लगने लगे हैं ग़ैर,

ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता |

बात बनाएं, बिगड़ गई |

दूध में दरार पड़ गई |

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4.मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो, गोरी

राजा के राज में,

जइयो तो जइयो,

उड़िके मत जइयो,

अधर में लटकीहौ,

वायुदूत के जहाज़ में,

जइयो तो जइयो,

सन्देसा न पइयो,

टेलिफोन बिगड़े हैं,

मिर्धा महाराज में,

जइयो तो जइयो,

मशाल ले के जइयो,

बिजुरी भइ बैरिन,

अंधेरिया रात में,

जइयो तो जइयो,

त्रिशूल बांध जइयो,

मिलेंगे ख़ालिस्तानी,

राजीव के राज में,

मनाली तो जइहो,

सुरग सुख पइहों,

दुख नीको लागे, मोहे

राजा के राज में |

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 5.एक बरस बीत गया

झुलासाता जेठ मास,

शरद चांदनी उदास,

सिसकी भरते सावन का,

अंतर्घट रीत गया,

एक बरस बीत गया |

सीकचों मे सिमटा जग,

किंतु विकल प्राण विहग,

धरती से अम्बर तक,

गूंज मुक्ति गीत गया |

एक बरस बीत गया |

पथ निहारते नयन,

गिनते दिन पल छिन,

लौट कभी आएगा,

मन का जो मीत गया |

एक बरस बीत गया |

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